भारत के महान संतो में संत तुकाराम का नाम प्रमुखता से लिया जाता है| प्रेम करुणा और दया के सागर संत तुकाराम प्राणीमात्र पर दयाभाव रखते थे | सारा जीवन दीन-दुखियों की सेवा में संत तुकाराम लगे रहे | एक समय ऐसा भी आया जब उनको भूखों मरने की नौबत आ गई। ऐसे में उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि ‘ जाओ खेत से कुछ गन्ने ही तोड़ लाओ किसी तरह से आज तो गुजारा होगा। ‘
संत तुकाराम पत्नी की बात मानकर गन्ने के खेत में गए और कुछ गन्ने तोड़कर उनका गट्ठर बनाया और घर की ओर चल दिए। रास्ते में कई लोगों ने उनसे गन्ने मांगे, तो संत तुकाराम ने जिसने भी गन्ने मांगे उसको उन्होंने अपने स्वभाव वश गन्ने दे दिए।
जब वह घर पहुंचे तो उनके पास गन्ने के गट्ठर में से सिर्फ एक गन्ना बचा था। उनकी पत्नी ने उनके हाथ में सिर्फ एक गन्ना देखा तो वह गुस्से में आग बबूला हो गई और समझ गई कि तुकाराम रास्ते में गन्ने को बांटते हुए आए हैं। उन्होने तुरंत संत तुकाराम के हाथों से गन्ना ले लिया और उनकी पिटाई शुरू कर दी। वह संत तुकाराम को जब तक पिटती रही जब तक गन्ना टूट नहीं गया। उसके बाद उनकी पत्नी का गुस्सा शांत हुआ।
संत तुकाराम चुपचाप अपना पत्नी से मार खाते रहे और जब गन्ने के दो टुकड़े हो गए तो वह हंसते हुए अपनी पत्नी से बोले की ‘ देखो तुम्हारे गुस्से में एक अच्छा काम हो गया। गन्ने के दो टुकड़े हो गए हैं एक तुम चूस लो और एक मैं चूस लेता हूं। ‘ अपने क्रोध के दावानल के सामने संत तुकाराम के प्रेम और क्षमा के अथाह सागर को लहराता देख उनकी पत्नी ने पश्चाताप में सिर पीट लिया। अपने पति के परोपकार, त्याग और क्षमा के गुण को देखकर उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे |
प्रसंग की शिक्षा यह है कि प्रेम और करुणा से क्रोध पर विजय पाई जा सकती है |
आध्यात्म सागर से साभार |
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